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क्या पैसा ही सब हैं

दुनिया में सब कुछ सपने सा लगता है,

हर खोई हुई चीज क्यों अपने सा लगता है।

रिस्तेदारी भी लोगों के औदे से होती है,

चाहत जरूरत सब सौदे की रोटी हैं।

दुनिया में सब लोग पैसे पे चलते हैं,

दुसरो की कामयाबी को देखकर जलते हैं।

रिश्ते नहीं सब झूठ की माला है,

किसी की दिवाली किसी का दिवाला हैं।

देश से ज्यादा अब घरों के हिस्से हैं,

हर एक घर के अब अपने ही किस्से हैं।

पानी की बूंदों पे होती लड़ाई है,

घरों को जलाती अब दिया सलाई हैं।

डिग्री नौकरी सब रोड़ों पे बिकती हैं,

पैसे की पेटी अब किस्मत लिखती हैं।

दुनिया में रिश्तों का अपना तराजू हैं,

देखो यहां पे सब पैसे का जादू है।

पैसा ही राजा है पैसा ही रानी हैं, दुनिया में लोगो की अपनी कहानी है।

पैसा बनाता है पैसा मिटाता हैं,

हर घर की खुशीयों को पैसा ही खाता हैं।।

वंशिका द्वारा लिखित (वंशिका से मिलने के लिए क्लिक करें)

नॉवेल मिंट द्वारा प्रकाशित

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