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कलयुग की नारी

हमको कन्या का रूप बता, 

खुद महीषासुर बन जाते है।

 पर कलयुग में हमको काली का, 

रूप नहीं दे पाते है।

 मारी जाती है रोज यहां, 

कन्या लोगो के हाथों से ।

 और जला दिया जाता है उनको,

 रोज बीच चौराहे पे।

 जिसने आवाज उठाई उसको, 

वहीं मार के टांग दिया ।

 सतीप्रथा के नाम पे उनको, 

जिंदा ही है दहन किया । 

औरत ही औरत की दुश्मन,

 बनकर कलयुग में आई है।

 अपनी बेटी को प्यार दिया, 

दुर्जा से सिर्फ लड़ाई है।

 बेटा अपना होता है, 

बेटी क्यों सिर्फ पराई है।

 लड़की का जीवन कलयुग में,

 द्रौपदी की एक लड़ाई है ।

 औरत ही औरत की दुश्मन,

 बनकर कलयुग में आई है ।


 

वंशिका द्वारा लिखित (वंशिका से मिलने के लिए क्लिक करें)

नॉवेलमिंट द्वारा प्रकाशित

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