भारत की वन्यजीव विविधता विश्व की सबसे समृद्ध धरोहरों में से एक है। हिमालय की बर्फीली चोटियों से लेकर पश्चिमी घाटों के उष्णकटिबंधीय जंगलों, राजस्थान के रेगिस्तान से लेकर सुंदरबन के मैंग्रोव तक, भारत में हर प्रकार का पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है। यहाँ 7.6% स्तनधारी, 12.6% पक्षी, और 6.2% सरीसृप प्रजातियाँ विश्व की कुल प्रजातियों का हिस्सा हैं। लेकिन, अवैध शिकार, वनों की कटाई, और मानव-वन्यजीव संघर्ष ने कई प्रजातियों को विलुप्त होने की कगार पर ला खड़ा किया है। वन्यजीव संरक्षण न केवल प्रकृति के संतुलन के लिए ज़रूरी है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत को भी बचाता है।
भारत सरकार ने वन्यजीव संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। प्रोजेक्ट टाइगर, 1973 में शुरू हुआ, एक ऐतिहासिक पहल है, जिसने बाघों की घटती आबादी को बढ़ाने में मदद की। आज भारत में 56 टाइगर रिज़र्व हैं, जो 2.23% भू-भाग को कवर करते हैं। एम-स्ट्राइप्स (M-STrIPES) जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग बाघों की निगरानी के लिए किया जाता है, और काज़ीरंगा नेशनल पार्क में थर्मल इमेजिंग कैमरे और ध्वनिक जाल जैसे उन्नत उपकरणों ने गैंडों के शिकार को कम किया है। प्रोजेक्ट एलिफेंट, 1992 में शुरू, हाथियों और उनके आवासों की रक्षा करता है। 88 हाथी कॉरिडोर बनाए गए हैं ताकि उनकी आवाजाही सुरक्षित हो और मानव-हाथी संघर्ष कम हो।
समुद्री कछुओं के लिए 1999 में शुरू हुआ सी टर्टल कंज़र्वेशन प्रोजेक्ट, विशेष रूप से ओलिव रिडले कछुओं के प्रजनन स्थलों की सुरक्षा पर केंद्रित है, खासकर ओडिशा के गहिरमाथा बीच पर। प्रोजेक्ट डॉल्फिन, 2020 में शुरू, गंगा नदी की डॉल्फिन और उनके जलीय आवासों की रक्षा करता है, हालांकि इसकी प्रगति धीमी रही है। प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड, 2009 में शुरू, हिमालयी क्षेत्रों में इस रहस्यमयी प्रजाति को बचाने के लिए काम करता है, विशेष रूप से लद्दाख में, जहाँ स्थानीय समुदायों का सहयोग सराहनीय है। इंडियन राइनो विज़न 2020 ने असम में एक सींग वाले गैंडों की संख्या 3,000 तक बढ़ाने में सफलता पाई।
हाल के वर्षों में, तकनीकी प्रगति ने संरक्षण को और प्रभावी बनाया है। वन्यजीव संस्थान द्वारा सेंट्रल इंडियन लैंडस्केप में कॉरिडोर मैपिंग और सैटेलाइट टेलीमेट्री जैसी तकनीकों ने प्रजातियों की आवाजाही को समझने में मदद की है। 2025 में, गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिज़र्व और रातापानी वन्यजीव अभयारण्य को टाइगर रिज़र्व का दर्जा मिला, जो जैव विविधता संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है। इसके अलावा, गंगा नदी की डॉल्फिन को रेडियो टैगिंग और किंग कोबरा की चार नई प्रजातियों की पहचान जैसे कदम संरक्षण रणनीतियों को और सटीक बनाते हैं।
हालांकि, चुनौतियाँ बरकरार हैं। पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन 2020 जैसे नियमों में ढील और बुनियादी ढांचा विकास ने आवासों को नुकसान पहुँचाया है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसे पक्षियों की आबादी बिजली लाइनों के कारण कम हुई है। स्थानीय समुदायों का सहयोग, पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन, और वैज्ञानिक अनुसंधान इन चुनौतियों से निपटने के लिए ज़रूरी हैं। वन्यजीव संरक्षण केवल प्रजातियों को बचाने तक सीमित नहीं है; यह स्वच्छ हवा, पानी, और पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने का आधार है। भारत की यह प्रतिबद्धता न केवल हमारी प्राकृतिक विरासत को बचाती है, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करती है
Written by Team Inspire
Published by Novel Mint Publishing